12/12/2025 | Press release | Distributed by Public on 12/12/2025 06:45
भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने इस रहस्य को उजागर किया है कि हिमालय के ऊपर हवा की ऊर्ध्वाधर गति ने उस भारतीय मॉनसून को कैसे आकार दिया है, जो सदियों से दक्षिण एशिया की जीवनरेखा रहा है।
वैज्ञानिक लगातार भारतीय मानसून का बेहतर पूर्वानुमान करने के तरीकों की खोज में जुटे हैं, जो दक्षिण एशिया में खेती,जल प्रबंधन और आपदा प्रबंधन के लिए आवश्यक है और जहां लाखों लोग अपनी आजीविका के लिए मानसून की बारिश पर निर्भर हैं। इससे दक्षिण एशिया में वायु गुणवत्ता का बेहतर आकलन करने में भी मदद मिलेगी।
हिमालय के ऊपर वायु प्रवाह के छिपे स्वरूप के बारे में नई जानकारियों से अब यह संभव हो पा रहा है। हालांकि, इस क्षेत्र में अब तक ऊर्ध्वाधर वायु गति के सीमित अध्ययन अप्रत्यक्ष गुब्बारा या उपग्रह-आधारित मापों पर निर्भर रहे हैं, जो जटिल हिमालयी भूभाग में ऊर्ध्वाधर वायु गति की दीर्घकालिक सूक्ष्म-स्तरीय परिवर्तनशीलता को पकड़ने में सक्षम नहीं हैं।
नैनीताल स्थित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के अधीन स्वायत्त अनुसंधान संस्थान आर्यभट्ट अनुसंधान संस्थान ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज (एआरआईएस) के वैज्ञानिकों ने तिरुवनंतपुरम स्थित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (आईएसआरओ) की अंतरिक्ष भौतिकी प्रयोगशाला (एसपीएल) के साथ मिलकर एशियाई ग्रीष्म मानसून (एएसएम) के महीनों के दौरान मध्य हिमालय में एशियाई ग्रीष्म मानसून प्रतिचक्रवात (एएसएमए) क्षेत्र के भीतर ऊर्ध्वाधर वायु गति का पहला प्रत्यक्ष और उच्च-विभेदन मापन किया।
इसके लिए उन्होंने मध्य हिमालय में स्थित नैनीताल के एआरआईईएस संयंत्र में स्वदेशी रूप से विकसित स्ट्रैटोस्फीयर-ट्रोपोस्फीयर (एसटी) रडार से प्राप्त दीर्घकालिक अवलोकन डेटा का उपयोग किया। इस रडार ने हवा की सूक्ष्म ऊर्ध्वाधर गतियों को भी महसूस करके हवा की दिशा को 'देखने' में उनकी मदद की।
वैज्ञानिकों ने दो वर्षों तक इस रडार को ऊपर की ओर लक्षित रखा और हजारों घंटों का डेटा एकत्र किया।
इस अध्ययन से प्राप्त रडार-आधारित मापों ने एक महत्वपूर्ण कमी को पूरा किया, जिससे हिमालय के ऊपर सभी मौसम स्थितियों में 5 सेमी s-1 जितनी कम औसत ऊर्ध्वाधर वायु वेग का पहला निरंतर, सटीक और उच्च-विभेदन माप प्राप्त हुआ।
वे एशियाई ग्रीष्मकालीन मानसून प्रतिचक्रवात के भीतर हवा के ऊर्ध्वाधर धक्के और खिंचाव की तलाश कर रहे थे, जो एक विशाल घूमता हुआ तंत्र है और यह हर मानसून में इस क्षेत्र के ऊपर मौजूद रहता है।
वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की सतह से 10 से 11 किलोमीटर ऊपर लगातार नीचे की ओर बहने वाली हवा की पहचान की, जो एक नई विशेषता है और मानसून के महीनों के दौरान ऊपरी क्षोभमंडल में अवरोही गति के एक विशिष्ट क्षेत्र को दर्शाती है। इससे संकेत मिलता है कि एशियाई ग्रीष्मकालीन मानसून प्रतिचक्रवात के भीतर ऊर्ध्वाधर परिसंचरण पहले की समझ से कहीं अधिक जटिल है, जिसमें हवा के ऊपर उठने और नीचे गिरने के क्षेत्र बारी-बारी से आते रहते हैं। अध्ययन में निचले और मध्य क्षोभमंडल में ऊर्ध्वाधर वायु गति में स्पष्ट भिन्नताएं भी दिखाई देती हैं, जबकि 12 किलोमीटर से ऊपर स्थिर ऊपर की ओर वायु प्रवाह कोई खास बदलाव नहीं रहा।
चित्र में कंटूर आवृत्ति ऊंचाई आरेख दर्शाए गए हैं, जो स्वच्छ हवा की स्थिति में प्रत्येक माह में प्रत्येक ऊंचाई पर ऊर्ध्वाधर वेग के विभिन्न मानों की आवृत्ति को दर्शाते हैं, यह आरेख 2-वर्षीय समग्र डेटा पर आधारित है। ठोस काली रेखाएं 1प्रतिशत, 10प्रतिशत और 25प्रतिशत आवृत्ति स्तरों को इंगित करती हैं। सबसे दाहिनी ओर का पैनल जून, जुलाई, अगस्त, सितंबर और अक्टूबर के लिए मासिक औसत ऊर्ध्वाधर वेग प्रोफाइल प्रदर्शित करता है।
ये परिणाम प्रतिचक्रवात के भीतर हवा की ऊर्ध्वाधर गति के बारे में नई समझ प्रदान करते हैं, विशेष रूप से 12 किलोमीटर से ऊपर धीमी, स्थिर वृद्धि और "दो-चरणीय" प्रक्रिया जो हवा को निचले क्षोभमंडल से समतापमंडल तक ले जाती है।
अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन (एजीयू) द्वारा प्रकाशित "अर्थ एंड स्पेस साइंस" नामक पत्रिका में छपे इस शोध में अधिक सटीक मौसम पूर्वानुमान विकसित करने, प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को मजबूत करने और जलवायु मॉडल में सुधार करने की अपार क्षमता है जो कृषि, जल संसाधनों और मानव स्वास्थ्य की रक्षा कर सकते हैं।
एशियाई ग्रीष्मकालीन मानसून प्रतिचक्रवात के भीतर ऊर्ध्वाधर गति को समझने से प्रदूषण फैलाने वाली वस्तुएं और ग्रीनहाउस गैस परिवहन के आकलन में भी वृद्धि होगी, जिससे बेहतर वायु गुणवत्ता प्रबंधन और अधिक प्रभावी जलवायु परिवर्तन को रोकने की रणनीतियों में योगदान मिलेगा।
प्रकाशन लिंक: https://doi.org/10.1029/2025EA004232
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पीके/केसी/एके